औरैया से दिबियापुर जाने वाले राज्य राजमार्ग SH 21 पर एक गांव के पास काला धुआं ही धुआं दिखाई दे रहा है। सड़क से जुगरने वाले लोग यहां से गुजरते समय अपनी गाड़ियों के शीशे बंद कर रहे हैं। आज हवा का रुख जिस तरफ है उस गांव का नाम मेरखपुर है। जहरीला काला धुआं इतना असहनीय है कि 1 किलोमीटर बसे इस गांव ने लोग अपने मुंह पर कोई कपड़ा या मास्क लगाए हैं। औरैया दिबियापुर रोड किनारे लगा लोक निर्माण विभाग का यह हॉट मिक्स प्लांट जब चलता है तो दृश्यता बहुत कम हो जाती है।
आसपास की लगभग सभी 2 किलोमीटर परिधि के कई हरे पेड़ अब भूरे हो चुके हैं। लोगों का दावा है कि खेतों में पैदावार कम हो चुकी है। आम के पेड़ों में अब बौर ( मंजरी ) हर साल नहीं आती। यह काला जहरीला धुआं आसपास गावों में रहने वालों के लिए तपेदिक का स्पष्ट निमंत्रण है।
“ये काला धुआं हमें मार रहा है हम यही सांस लेते हैं”
इस हॉट मिक्स प्लांट के ठीक सामने प्रभा देवी का खेत है। वह धुएं से इतनी परेशान हैं कि ऑफर मिलने के बावजूद इस हॉट मिक्स प्लांट में काम नहीं किया। वह कहती हैं, ''मैं एक किसान के रूप में अपनी पहचान से खुश हूं।'' लेकिन धुएं की समस्या उन्हें पलायन के बारे में सोचने पर मजबूर कर रही है। वह अफसोस जताते हुए कहती हैं, "ये काला धुआं हम सभी के लिए एक बड़ी समस्या है। ये काला धुआं ही है जो हम खाते हैं और सांस लेते हैं। और हम इसके लिए कुछ नहीं कर सकते। इसलिए हम किसी अन्य जगह पर जाने के बारे में सोच रहे हैं लेकिन पैसों की तंगी हमें ये भी नहीं करने देती”
सिर्फ प्रभा ही नहीं, इस हॉट मिक्स प्लांट के आसपास के गांवों में रहने वाले लोग भी इस धुएं से तंग आ चुके हैं। गांव के एक बुजुर्ग रमेश हैं उन्होंने कृषि की पढ़ाई की है। वे कहते हैं। “जब से ये प्लांट शुरू हुआ है हम हरित क्रांति से पहले वाले दौर में दोबारा पहुंच गए हैं। हमारे खेतों में अब कम अनाज पैदा होता है। हमारे खेतों की पैदावार 40 प्रतिशत तक कम हो गई है।” रमेश का एक आम का बाग है जिसमें 24 आम के पेड़ थे लेकिन 10 साल के भीतर ही आधे से अधिक पेड़ सूख गए। उनका दावा है कि इस प्लांट के काले धुएं की वजह से उनके आम के पेड़ सूख गए। जो आम के पेड़ बचे भी हैं उनमें हर साल बौर ( मंजरी ) नहीं आती।
स्थानीय सरकारी डॉक्टर राम द्विवेदी कहते हैं कि हम इस इलाके से तपेदिक के मरीजों की संख्या ज्यादा देख रहे हैं। लोग धूल और धुएं की वजह से खासी महसूस करते हैं लेकिन वे लापरवाही की वजह से इसे अनदेखा कर देते हैं और 3 सप्ताह के ज्यादा खांसी आने पर यह तपेदिक में बदल जाता है। हमने प्लांट के आसपास रहने वालों में सांस की बढ़ती बीमारियों को भी देखा है।
सब गोलमाल है जी सब गोलमाल है।
हॉट मिक्स प्लांट का उपयोग सड़कों के निर्माण के लिए बिटुमेन के साथ पत्थर के मिश्रण को मिलाने के लिए किया जाता है। एक हॉट मिक्स प्लांट में आमतौर पर एग्रीगेट डिब्बे, फीडर, वेटिंग सिस्टम, सुखाने वाले ड्रम, बिटुमेन और ईंधन भंडारण टैंक, वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण, हॉट मिक्स स्टोरेज साइलो और लोडिंग सुविधा शामिल होती है। ये संयंत्र निर्माण स्थल और राजमार्गों के पास स्थापित किए जाते हैं और तब तक काम करते हैं जब तक निर्माण कार्य जारी रहता है। हॉट मिक्स प्लांट की सही गिनती का डाटा अभी तक उपलब्ध नहीं है क्योंकि जहां भी सड़क का निर्माण होता है वहां पर ये अस्थाई प्लांट स्थापित कर लिए जाते हैं।
हालाँकि, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/प्रदूषण नियंत्रण समितियों और कुछ राजमार्ग निर्माण कंपनियों से हॉट मिक्स संयंत्रों के बारे में जानकारी एकत्र करने का प्रयास किया गया है। एकत्र की गई जानकारी के अनुसार, देश में 577 हॉट मिक्स प्लांट हैं।
लोक निर्माण विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तर प्रदेश में लोक निर्माण विभाग के 32 स्थाई हॉट मिक्स प्लांट हैं। जिसमें से लगभग सभी 40-60 TPH ( टन प्रति घंटा) की छमता वाले हैं। इन प्लांट में मुख्यतः बिटुमिन मिक्स के मिश्रण को मिलाया जाता है जिससे छोटे कणीय (PM) के रूप में प्रदूषण होता है। सल्फर डाई आक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड मुख्यत: निकलते हैं जो कि मानव स्वास्थ्य और फसलों के लिए हानिकारक हैं। इसमें अलग अलग मानक के हॉट मिक्स प्लांट के लिए अलग अलग प्रदूषण मापक मानक तय किए गए हैं।
गर्म मिश्रण संयंत्रों में बिटुमेन मिश्रण तैयार करने से पार्टिकुलेट मैटर के साथ-साथ गैसीय प्रदूषकों वाले उत्सर्जन उत्पन्न होते हैं। संयंत्रों में प्राथमिक उत्सर्जन स्रोत बिटुमेन मिश्रण तैयार करने के लिए ईंधन जलाया जाता है, जो पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) और गैसीय प्रदूषक जैसे S02, NOx, CO, C02, VOCs आदि का उत्सर्जन करता है। हॉट मिक्स संयंत्रों में पाए जाने वाले अन्य उत्सर्जन स्रोतों में बाहरी उत्सर्जन का प्रबंधन भी शामिल है। इनमें, वाहनों की आवाजाही, बिटुमेन का गर्म होना, कुल भंडारण और संचालन तथा वाहन निकास भी शामिल है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी नियमों के अनुसार हॉट मिक्स प्लांट की चिमनी की ऊंचाई 10 से 25 मीटर के बीच होनी चाहिए लेकिन इस प्लांट में चिमनी की ऊंचाई 4 मीटर से ज्यादा नहीं हैं। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि ये प्लांट एक गांव के मुहाने पर बसा है जिसकी इस प्लांट से दूरी 50 मीटर से भी ज्यादा नहीं है। जबकि सीपीसीबी और पर्यावरण संरक्षण दूसरा संशोधन नियम, 2023 के नियमों के अनुसार हॉट मिक्स प्लांट की बस्तियों, शहरों , गांवो से दूरी 1 से 2 किलोमीटर दूर होनी चाहिए।
19 मई 2023 को भारत के राजपत्र में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना प्रकाशित की गई। इसके अनुसार हॉट मिक्स प्लांट का स्थान निर्धारण संबंधी नियम बताए गए हैं।
शहरों और कस्बों की सीमा से 1 किमी दूर होना चाहिए
आवासों से 0.5 किमी दूर
राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों से 0.2 किमी दूर
विद्यालयों/ कॉलेजों से 0.5 किमी दूर
अस्पताल, न्यायालय तथा पर्यटन स्थल से 1 किमी दूर
इंसानी बस्ती के पास बसा हॉट मिक्स प्लांट, फोटो: यश
लोक निर्माण विभाग का यह हॉट मिक्स प्लांट राज्य राजमार्ग SH2 से के किनारे ही बसा हुआ है। प्लांट के 200 मीटर की परिधि में एक प्राथमिक विद्यालय है। छोटे छोटे बच्चे जहरीली हवा सूंघने को मजबूर हो रहे हैं। सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि इस हॉट मिक्स प्लांट से 300 मीटर दूर जिले का मुख्य चिकित्सा अधिकारी का कार्यालय है लेकिन विभाग को शायद कभी कभी प्लांट के धुएं का ख्याल नहीं आया।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2021 में न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में संजय कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के एक मामले में हॉट मिक्स के लिए नियम और मानक के लिए एक विस्तृत आदेश सुनाया था। इसके अनुसार प्लांट द्वारा बाह्य प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 6 तरीके बताए गए हैं।
साइक्लोन
मल्टी साइक्लोन
धूल हटाना
प्रदूषण मापक
स्क्रबर
बैग फिल्टर
इस प्लांट में दिए गए 5 चिमनी संबंधित प्रदूषण रोधी यंत्रों में से केवल 2 आधे अधूरे काम में लिए जा रहे हैं। बाकी 3 प्रदूषण रोकने वाले यंत्रों का कोई पता नहीं है कि वे कहां हैं? और किस स्थिति में हैं। यहां धुएं को पहले धूल एकत्रीकरण इकाई में भेजा जाता हैं जहां पर धूल को एकत्र कर लिया जाता है लेकिन एकत्रित धूल को बगल में निकाल कर फेक दिया जाता है। इसके बाद सीधे स्क्रबर से पानी की बौछार कर धुएं को खुले आसमान में छोड़ दिया जाता है। कई बार तो ये धुआं अपने साथ काली धूल लेकर उड़ता है और आसपास के 2 किलोमीटर तक के गांवो के छतों पर काली धूल एकत्रित हो जाती है।
आंतरिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए समिति ने 8 तरीके बताए हैं
अंतरिक सड़कों को साफ रखना
गिट्टी/ पत्थर को पानी मिलाकर प्रयोग करना
पत्थर को ज्यादा गर्म न करना
सल्फर डाइऑक्साइड को कम करना
नाइट्रोजन ऑक्साइड को कम करना
प्रयोग किए गए पानी का प्रबंधन
ठोस कूड़े का प्रबंधन
कच्चे माल का प्रबंधन
यह प्लांट बाह्य प्रदूषण नियंत्रण के कदमों को भी प्रभावी ढंग से उठाने में अक्षम है। आंतरिक सड़कें वर्षों पहले पक्की तो की गई थीं लेकिन भारी वाहनों के आवागमन से वे टूट चुकी हैं। इससे वाहनों के आवागमन के समय बहुत तेज धूल उड़ती है। कंक्रीट को ड्रम में उड़ेलते समय धूल का गुबार उठ जाता है क्योंकि कंक्रीट के साथ पानी नहीं मिलाया जाता है। यह सब कुछ प्लांट द्वारा हो रही बड़ी लापरवाही को दिखाता है।
इस प्लांट में बिटुमिनस ( डामर) का प्रयोग पर भी नियमों कानूनों को ताक पर रखा जाता है। डामर के टैंकर खुले पड़े रहते हैं और मिश्रण बनाते समय मात्रा का ध्यान नहीं रखा जाता।
यह प्लांट को अपनी छमता से ज्यादा काम करता है। क्योंकि आसपास के जिलों में बनने वाली रोड़ों में भी मिश्रण यहीं से तैयार होकर जाता है। संजय कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में नोएडा में चल रहे हॉट मिक्स प्लांटों को बंद करते हुए एनजीटी ने कहा, “ इन प्लांटों की वहन क्षमता (विभिन्न प्रकार के मिश्रण के साथ बिटुमेन की मात्रा) नकारात्मक है और वायु मानदंड पूरे नहीं किए जा रहे हैं। इन सिफारिशों का कोई औचित्य नहीं है कि केवल नए हॉट मिक्स प्लांटों को अनुमति नहीं दी जा सकती है और पुराने मिक्स प्लांट सार्वजनिक स्वास्थ्य की कीमत पर भी जारी रह सकते हैं।”
एनजीटी ने 9 सितंबर, 2021 को निर्देश दिया कि 1 नवंबर, 2021 से किसी भी हॉट मिक्स प्लांट (पुराने और नए) को वहन क्षमता से अधिक और निर्धारित साइटिंग मानदंडों के अनुपालन के बिना अनुमति नहीं दी जाएगी। MoEF&CC, CPCB, राज्य की एक संयुक्त समिति पीसीबी, जिला मजिस्ट्रेट, और प्रोफेसर्स को हॉट मिक्स प्लांट के बेहतर तकनीकी विकल्पों और उन्नत वायु प्रदूषण उन्मूलन उपायों पर तीन महीने के भीतर एक रिपोर्ट देनी होगी।
यह देखा जा सकता है कि SO2 और NOx का उत्सर्जन काफी ज्यादा है। हालाँकि, विभिन्न प्रदूषणकारी इकाइयों पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, दोनों प्रकार के गर्म मिश्रण संयंत्रों के लिए SO2 का मानक 250 mg/Nm3 प्रस्तावित है। दोनों प्रकार की इकाइयों के लिए NOx की सीमा 200 mg/Nm³ प्रस्तावित है और ड्रम टाइप के लिए पीएम का मानक 150 mg/Nm³ तथा बैच टाइप के लिए 300 mg/Nm³ प्रस्तावित है।
दिबियापुर नगर और इसके आसपास की सांसें वर्षों से फूल रही हैं। 29 मार्च 2016 को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने लाल से नारंगी रंग के वर्ग में डाल दिया था। दिबियापुर के आसपास GAIL और NTPC के संयंत्र भी हैं। इन संयत्रों पर समय समय पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण फैलाने की वजह से जुर्माना लगाया रहता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 28 दिसंबर 2018 को GAIL ( India) लिमिटेड पर 37 लाख का जुर्माना लगाया गया था। यह इकाई PM, SO2, CO आदि का सीमा से ज्यादा उत्सर्जन करते हुए पाई गई थी।
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