न माया मिली न राम

सामान्य ज्ञान की किताबों और सरकारी वेबसाइटों में प्लास्टिक सिटी के नाम से जाना जाने वाला औरैया जिले का यह दिबियापुर है।  इस शहर की 314 एकड़ हरी भरी जमीन जो अब बंजर है, 12 साल से औद्योगिक विकास की राह देख रही है। इस जमीन से सटा हुआ लखनपुर गांव है यहां के लगभग सभी लोगों की जमीन सरकार की एक महत्वाकांक्षी परियोजना प्लास्टिक सिटी पार्क में चली गई। कुछेक को छोड़कर पूरा गांव भूमिहीन है। उनको एक वक्त तक खुशी थी कि यहां औद्योगिक पार्क का विकास होगा और उनकी जिंदगियां बदल जाएंगी, रोजगार के साधन होंगे और उन्हें काम की तलाश में दूसरे शहरों में प्रवासी नहीं होना पड़ेगा। लेकिन 22 साल बीतने के बाबजूद उनके सपने अभी सफेद हैं। 

दिबियापुर शहर में प्रस्तावित प्लास्टिक सिटी, फोटो: यश

स्थानीय निवासी सोनी के पति सुनील 20 किलोमीटर दूर एक प्लांट में साइकिल से नौकरी करने गए हैं। 12 साल से सोनी और उनके पति की आखों में उनके गांव में ही बसने वाले प्लास्टिक सिटी पार्क में एक नौकरी और एक प्लाट का सपना है जिसका आश्वासन उन्हें सरकार ने दिया था। उनकी 4.62 एकड़ जमीन इस परियोजना में गई है। सोनी कहती हैं कि सरकार ने उनकी जमीन मिट्टी के भाव ले ली, हमारे पास अब न जमीन है और न ही नौकरी, हम अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा भी उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। मेरे बच्चों की शादियां कैसे होंगी!

सरकार ने उनकी जमीन 1.25 लाख प्रति एकड़ के हिसाब से ली है। उनका दावा है कि 70 हजार रुपए की एकमुश्त रकम दे दी गई इसके बाद वे कोर्ट गए और सालों तक मुकदमा लड़ने के बाद उन्हें लगभग 1.20 लाख रुपए मिले।  

लखनपुर गांव निवासी जगरूप सिंह और सुशील कुमार कहते हैं हमारे साथ धोखा हुआ है हमारी जमीन बिना हमारी मर्जी के ले ली गईं और समझौते में चाट के दोने से भी कम कीमत का पैसा दिया गया। जिन लोगों ने मुकदमे लड़े उन्हें कुछ पैसा और मिला लेकिन जितना मिला उससे ज्यादा पैसा वो कानूनी प्रक्रिया में खर्च कर चुके थे। उनका आरोप है कि तत्कालीन विधान परिषद सदस्य और छेत्रीय किसान नेता मुलायम सिंह यादव ने सरकार के साथ उनका समझौता कराया लेकिन यह सौदा फायदे का नहीं था। उन्हें 1.25 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से रकम दी गई। उनका आरोप है कि उन पैसों में से भी उन्हें पूरा धन नहीं मिला ज्यादातर पैसा नेताओं और दलालों ने खा लिया। 

अंग्रेजी कानून के अनुसार हुआ था भूमि अधिग्रहण 

दरअसल दिबियापुर में देश की महारत्न कंपनियां GAIL और NTPC हैं। GAIL में उत्पादित कच्चे माल की आपूर्ति आसानी से मिलने के कारण प्लास्टिक के उद्योगों की स्थापना का सपना देखा गया था। वर्ष 2002 से 2012 तक भूमि पर कोई भौतिक कब्जा नहीं हुआ न ही सरकार ने इस भूमि के लिए कोई परियोजना लाई। वर्ष 2002- 03 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के तहत किसानों की 315 एकड़ जमीन को अधिग्रहित किया गया था। ये अधिग्रहण भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 17 के अंतर्गत किए गए। यह धारा तात्कालिकता को परिभाषित करती है और ऐसी भूमि जिसकी लोक प्रयोजन के लिए तुरंत आवश्यकता हो, जिलाधिकारी द्वारा सूचना जारी करके 15 दिन के भीतर भूमि पर कब्जा करने का अधिकार देती है। इस कानून के तहत मुआवजा की प्रकिया अधिग्रहण के बाद होती है। जिलाधिकारी सरकारी रेट और भूमि पर किसी क्षति के हिसाब से मुआवजा तय करते हैं। 2013 के बाद से देश में यह अधिनियम प्रभावी नहीं है। किसानों की समस्याओं और सरकार द्वारा तात्कालिकता का दुर्पयोग करते हुए भूमि लूटे जाने के आरोपों के बाद वर्ष 2013 में नया भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 आया। यह अधिनियम पुराने अधिनियम के तहत यदि ली गई जमीनों पर अगर भौतिक कब्जा नहीं हुआ है या फिर पूरा मुआवजा नहीं दिया गया है तो पूरी कार्यवाही को समाप्त माना जाता है और अधिग्रहण की प्रकिया दोबारा शुरू की जाती है।

कैसी है प्लास्टिक सिटी की स्थिति ?

प्लास्टिक सिटी की स्थापना के लिए 12 साल पहले 5 गांव की 314 एकड़ भूमि अधिग्रहीत की गई थी। दिबियापुर विधानसभा में कंचौसी मोड़ के समीप प्लास्टिक सिटी की नींव रखी गई। इस पर कई प्लास्टिक उद्योगों की स्थापना की जानी है। यहां पर औद्योगिक, आवासीय टाउनशिप, बाजार, बैंक, स्कूल, छात्रावास, पार्क आदि बनना प्रस्तावित है। प्लास्टिक के कच्चे माल की आपूर्ति के लिए गेल के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर भी किए जा चुके हैं। इसके विकास के लिए करीब 500 करोड़ से अधिक रुपये अब तक खर्च किए जा चुके हैं। 314 एकड़ के इस औद्योगिक क्षेत्र में 285 एकड़ में प्लास्टिक उत्पादों से जुड़े उद्योगों की स्थापना होनी है, जबकि 89 एकड़ में आवासीय भवन बनेंगे। कई उद्योगपतियों ने भूखंड आवंटन के पश्चात उन पर कब्जा भी ले लिया, परंतु धरातल पर काफी कमियों के कारण अभी तक उद्योगपतियों ने संयंत्रों की स्थापना करने में कोई रुचि नहीं ली।

प्लास्टिक सिटी की वर्तमान स्थिति , फोटो: यश
प्लास्टिक सिटी की वर्तमान स्थिति , फोटो: यश

314 एकड़ की इस बंजर भूमि में सड़कें तो हैं लेकिन वाहन चलने लायक नहीं, यहां बिजली के हजारों खबें तो हैं पर उन पर तार नहीं, यहां पानी की टंकी भी है पर पानी नहीं, यहां एक मात्र पुलिस चौकी है जिसे सूबे की योगी सरकार ने प्लास्टिक सिटी क्षेत्र में बढ़ रही चोरी की घटनाओं और अपराधों के मद्देनजर बनाया है। इस क्षेत्र में उद्योग लगाने की कोशिशें तो कई बार हुई लेकिन कुछ स्थानीय विरोधियों और बुनियादी जरूरतों जैसे बिजली, पानी, सुरक्षा न होने की वजह से आवंटी उद्योग लगाने को तैयार नहीं थे। जब भी कोई आवंटी वहां निर्माण करने की प्रक्रिया शुरू करते तो विरोधी चिन्हित ईंट भट्ठा से ईंट लेने और ठेकेदार से काम कराने और खुद द्वारा बताई गई दुकान से ही निर्माण सामग्री लेने के लिए बाध्य करते थे। इंकार करने वाले आवंटी को परेशान किया जाता था। यही वजह रही कि सपा शासन काल में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के तमाम प्रयास के बाद भी उद्योग स्थापित नहीं हो सके।

सूबे में भाजपा की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने व्यापक सुरक्षा प्रबंध के साथ प्लास्टिक सिटी में उद्योग लगाने के आदेश दिए तो इसी कड़ी में पुलिस चौकी की स्थापना की गई । कच्चे माल की दिक्कत ना हो इसलिए दोबारा गेल से एमओयू किया गया है । लेकिन 5 वर्ष बीतने के बाबजूद केवल एक आवंटी अपना स्क्रैब सेंटर लगा रहा है जहां कबाड़ा वाहनों को स्क्रैब किया जाएगा।

274.4 एकड़ पर स्थापित होगी इंडस्ट्रीज

वर्ष 2012 में यूपी प्लास्टिक सिटी डेवलेपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (एसपीवी)का गठन किया गया था। वर्ष 2012 के अंत में प्लास्टिक उद्योग लगाने के इच्छुक लोगों को ड्राफ्ट के रूप में 5 हजार रुपए जमा करके पंजीकरण कराने के लिए कहा गया था। एसपीवी पार्टनर बनने वालों को इंडस्ट्रीज लगाने के लिए प्लाट आवंटित करने की बात कही गई। आशाओं, आकांक्षाओं एवं उम्मीदों से लबरेज सैकड़ों स्थानीय लोगों ने 5 हजार रुपए ड्राफ्ट के रूप में जमा करके पंजीकरण भी कराए। लोगों के उत्साह को कैश कराने के लिए प्लांट लगाने के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट सबमिट भी कराई गई। 19 अप्रैल 2013 को अखबारों में विज्ञप्ति देकर बताया गया कि एसपीवी में सदस्यता शुल्क जमा करने वाले लोग भूखंड की प्रीमियम दर 1200 रुपए प्रति वर्ग मीटर की 10 फीसदी धनराशि जमा कराएं। इसके लिए 12 अगस्त 2013 को साक्षात्कार के लिए भी बुलाया गया। परंतु प्लास्टिक सिटी अभी तक परवान नहीं चढ़ सकी। एसपीवी में पंजीकरण कराने वाले अधिकतर लोग प्लास्टिक सिटी बननेे की उम्मीद ही छोड़ चुके हैं। कुछ तो कई ऐसे हैं जो अपना पंजीकरण का रुपया वापस पाने के लिए जोड़ तोड़ लगा रहे हैं।

प्लास्टिक सिटी की वर्तमान स्थिति , फोटो: यश

उत्तर प्रदेश स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलेपमेंट अथारिटी की वेबसाइट के अनुसार गेल, एनटीपीसी, सीपेट, एमएसएमई-डीआई एवं फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट (हुडको, सिडबी, नाबार्ड एवं अन्य) के सहयोग से दिबियापुर का प्लास्टिक पार्क स्थापित होना है। 274.4 एकड़ भूमि पर इंडस्ट्रियल यूनिट एवं 84.93 एकड़ भूमि पर रेजीडेंशियल यूनिट एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट होना है। कंचौसी एवं फफूंद रेलवे स्टेशनों से गुजरा रेलवे का ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर प्लास्टिक सिटी को रेल कनेक्टिविटी प्रदान करेगा।

अखिलेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए मुंबई में हुआ था रोड शो

अखिलेश सरकार में औरैया के प्लास्टिक सिटी बसाने के लिए काफी प्रयास किए गए। परंतु प्लास्टिक सिटी बस नहीं पाई। यहां तक कि इसके लिए मुंबई में रोड शो आयोजित कर बड़े उद्योगपतियों को आकर्षित करने का भी प्रयास किया गया था। पिछले वर्ष में डीएम औरैया ने यहां पर कब्जा वाली भूमि को खाली कराया था। वर्षों से खाली पड़ी इस जमीन पर स्थानीय फिर से खेती करने लगे थे। डीएम औरैया ने खड़ी हरी फसल को ट्रैक्टरों से जुतवा दिया था। 

यूपीसीडा का गेल के साथ हुए अनुबंध के बाद प्लास्टिक सिटी में प्लाट, निवेश मित्र पोर्टल के जरिए दिए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीसीडी) समेत यूपी एनआरआई वेबसाइट पर दिबियापुर क्षेत्र में प्रस्तावित प्लास्टिक सिटी में उद्योग लगाने के लिए देश के बड़े उद्योगपतियों से लेकर अनिवासी भारतीयों को आकर्षित किया जा रहा है। वेबसाइटों पर धरातलीय कार्य पूरे होने का जोर-शोर से प्रचार प्रसार हो रहा है, लेकिन अभी तक धरातल पर लगभग सभी काम अधूरे पड़े हैं। 12 वर्ष गुजरने के बावजूद प्लास्टिक सिटी को विकसित करने का सपना अधूरा है।

इसी बीच यूपी एनआरआई वेबसाइट के जरिए विदेश में बसे अनिवासी भारतीयों को भी प्लास्टिक सिटी में उद्योग लगाने के लिए आकर्षित किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई है। वेबसाइट पर प्लास्टिक सिटी के बारे में जानकारी दी गई है कि गेल, एनटीपीसी, सीआईपीईटी (सीपेट), एमएसएमई डीआई और वित्तीय संस्थानों एचयूडीसीओ, एसआईडीबीआई और नाबार्ड के साथ समन्वय में एकीकृत प्लास्टिक पार्क की स्थापना की जा रही है। वेबसाइट में बताया गया है कि परियोजना की अनुमानित लागत 33.51 मिलियन अमेरिकी डालर (लगभग ढाई अरब रुपये) है।

औद्योगिक, आवासीय टाउनशिप, बाजार, बैंक, आतिथ्य, स्कूल, छात्रावास और पार्क प्रस्तावित है। कौशल विकास केंद्र, टूल रूम, ट्रीटमेंट प्लांट, वेयर हाउस जैसी सुविधाएं भी प्रस्तावित हैं। औद्योगिक भूखंड के आवंटन की प्रक्रिया चल रही है। जबकि क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि प्लास्टिक सिटी में सड़कों की हालत बहुत खस्ता है। यहां सिर्फ पुलिस चौकी की स्थापना हुई है। 

कई सरकारें आईं और चलीं गईं लेकिन दिबियापुर में वर्षों से प्रस्तावित प्लास्टिक सिटी में प्लास्टिक उद्योगों की स्थापना अभी तक नहीं हो पाई है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्लास्टिक सिटी की स्थापना होने पर जिले के युवाओं को रोजगार के लिए बाहर नहीं भटकना पड़ेगा। 

UPSDC के बाद UPSIDA को दिया गया यह प्रोजेक्ट, फोटो: यश

इस इलाके में किसान अपनी जमीनों के लेकर कुछ क्षेत्रीय किसान नेताओं और राज्य स्तर के किसान नेताओं के साथ धरना प्रदर्शन, मीटिंग आदि करते रहे हैं लेकिन उसका कोई परिणाम निकल कर सामने नहीं आया है किसान नेता अजय अनमोल कहते हैं कि देश भर में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 17 के तहत सरकार ने जबरदस्ती किसानों की भूमि कब्जे में ली है इसे वापस किया जाना चाहिए वह कहते हैं कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के अनुसार भूमि अधिग्रहीत करने पर बाजार भाव से चार गुना अधिक राशि दी जाती है। लेकिन प्लास्टिक सिटी में जिन किसानों की भूमि गई उन्हें चाट के दोने की कीमत के बराबर से भी मुआवजा नहीं मिला। वह कहते हैं कि 1.25 लाख रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से ली गई जमीनों को अगर वर्ग मीटर में निकल जाए तो ₹30 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से किसानों को पैसा मिला है। उनकी मांग है कि किसानों की भूमि वापस की जाए या फिर अधिग्रहण की प्रक्रिया नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 24(2)के तहत की जाए। वह कहते हैं कि घरेलू मांग को नजर में नहीं रखा गया और प्रदेश में कई औद्योगिक इकाइयों की नई रख दी गई उनका कहना है कि जब देश -विदेश में हमारे बनाई गई उत्पादों की मांग नहीं है तो यह औद्योगिक इकाइयां स्थापित होना संभव ही नहीं है।

जानकारों का मानना है कि इस क्षेत्र के औद्योगिक विकास के लिए परिवहन की सुविधाएं विकसित की जाए। NH2 से अधिक दूरी होने के कारण आवंटी यहां उद्योग लगाने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। दिबियापुर औरैया मार्ग के चौड़ीकरण का काम किया जाए जिससे परिवहन आसान हो साथ ही सरकारी अमला भी ठीक प्रकार से काम नहीं रहा है प्लास्टिक सिटी पर हो रही चोरी की घटनाओं और बुनियादी जरूरतें जो सरकार को विकसित करनी चाहिए वो नहीं हुई हैं ऐसे में उद्योगपति उद्योग लगाने के लिए कैसे आकर्षित होंगे!

लखनपुर गांव निवासी सोनी अकेली नहीं हैं। लुखड़ पुरा, करोढ़े पुरवा, उसरारी और चमरौआ के किसानों के भी लगभग यही हाल हैं। वे अपनी मांगों के लिए कोर्ट में मुकदमे लड़ रहे हैं और उचित मुआवजे और शीघ्र विकास की मांग कर रहे हैं।


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लिखाड़े

Trainee Journalist हूं फिलहाल, जल्द स्थाई होने की प्रबल संभावना है। आजकल IIMC में अपना अड्डा जमा हुआ है। Delhi University🎓 से BA कर चुका हूं लोगों को दिखाने के लिए, भट्ट कनपुरिया हूं। "अप्प दीपो भव:" में भयंकर भरोसा है। |आना है जाना है जीवन चलते जाना है... | बस इतना ही है। ब्लॉग पढ़ लो..